Saturday, March 6, 2010

तेरे करीब हूँ ,तू पास है ....

तेरे करीब हूँ ,तू पास है ,हूँ खुश कितना ,
बंद पलकों से तुझे देखता ही जाता हूँ,
आँख खुलते ही ,हकीकत का नज़ारा पा कर,
खुद को मै दूर , बहुत दूर ,खड़ा पाता हूँ ,

हम करीब आये थे ,समझा था कि ग़म कम होंगे ,
दिल-बीमार संभल जाए गा ,वोह संग होंगे ,
गर यह हम जानते , महफ़िल में तेरी आते ना,
फिर वही मै ,वही यादें ,औ वही ग़म होंगे ,

हद जिस कि क़यामत हो ,उसे इंतज़ार कहतें हें ,
इसी ख़याल से कहते नहीं ,चुप रहतें हें ,
राह के बुझते चिराग़ों पे ज़रा ग़ौर करो ,
एक ख़ामोश जुबां में ,यह कुछ तो कहतें हें ,,

Friday, March 5, 2010

मेरे लिए मांगी थी तपिश तूने

मेरे लिए मांगी थी तपिश तू ने ख़ुदा से ,
इस वास्ते ता-ज़िन्दगी जलता ही रहूँ गा,
मैं फितरतन छा जाऊंगा हर सुबहो फ़लक पर ,
हर
शाम तेरी चाह पे ढलता ही रहूँ गा ,

दिल
में लिए तूफ़ान मुस्कान लबों पर ,
ज़ख्मो के समंदर में मचलता ही रहूँ गा ,
गर
रोक सके रोक ले मुझ को यह ज़माना ,
जब
तक चले गी साँस में चलता ही रहूँ गा ,

Wednesday, March 3, 2010

मैं अक्सर सोचता रहता हूँ ,तुम.......

मैं अक्सर सोचता रहता हूँ ,तुम अक्सर यह चाहते हो ,
की हर महफ़िल में सब मुझ को ,मेरे ग़म को सराहें ,
मेरा गहरा पुराना दर्द ,बन कर ग़मे जब बिखरें ,
यह संगदिल दुनियां वाले दाद दें और मुस्कुराएँ ,

पत्थर के जिगर वालो ,मेरे ग़मों को ना लूटो ,
ना जाने वक्त कब फिर मेहरबाँ हो कर तरस खाए ,
है गर यह फ़ैसला उन का ,मेरे मरने पे आयें गे,
दुआएं सब करो यारो कि मुझ को मौत जाये ....

जितनी भी बार मैंने तुम से

जितनी भी बार मैंने तुम से रास्ता पूछा,
तुम ने ऊँगली के इशारे से राह दिखलाया ,
पूछता मैं रहा मुड़ , मुड के पूछने खातिर ,
और हर बार संग ,तुम ने वोह ही दोहराया ,

आज भटका हूँ मै ,फिर खोये बिना होश हवास ,
फिर से इक बार, उसी राह पे रहा हूँ मैं ,
रास्ता पूछूं गा ,शायद वोह आज कह ही दे ,
साथ जाओ उसी और जा रहा हूँ मै ,,

Monday, March 1, 2010

रंग तेरी तस्वीर पे

बिखर गया इक पल में तेरी यादों का प्यारा संसार ,
रंग तेरी तस्वीर पे हम ने नहीं लगाया अब की बार,,

बंद कमरे में बैठ अकेले ,किस्मत को जी भर के कोसा,
नाम आँखों से एक भी कतरा ,नहीं बहाया अब की बार,,

तकिये के नीचे तेरी तस्वीर , छिपा कर तो रखी थी,
लेकिन आधी रातको दिल से नहीं लगाया अब की बार ,,

हम जिस साज़ के मधुर सुरों पर,मगन मस्त झूमा करते थे ,
जाने उस ने किस महफ़िल में रंग जमाया अब की बार ,,

अब शायद यह संग कभी भी रंगों से ना खेल सके गा ,
इन्द्रधनुष पर स्याह बादल का ,साया छाया अब की बार ,,

रंग तेरी तस्वीर पे हम ने नहीं लगाया अब की बार .......

Sunday, February 28, 2010

लाजवाब लफ्ज़ 'दोस्त ' के नाम


वाह कहती है जुबां ,जिस नाम पर ,जिस बात पर ,
याखुदा यारों पे मेरे रंग की बरसात कर ,, होली है होली है......

Sunday, February 21, 2010

फिर तुम

गुलशन के वीरां कोने में , मेरा घर था , मेरा घर है ,
भंवरो की बस्ती में बोलो ,हम तुम को कैसे मिल जाते ,,

मेरे हाथों की लकीरों में जो पढ़ सकते हो पढ़ लो ,
इनमे धुंधला सा कोई नाम कई बार लिखा है ..

Saturday, February 20, 2010

लाजवाब -तुम सिर्फ तुम

दर्द की शिद्दत में जाने क्या से क्या हम कह गए ,
खुदा उन को हमारी बददुआयें ना लगें,


मिरे यार का तस्सव्वुर इस दर्जा है मुक्कदस ,
तख्लीके काबा हो गयी ,सिजदा जहाँ किया ,

रूठे वोह ख्वाब में हम आँख नहीं खोलें गे ,
ख्वाब में फिर से वोह आये मनाये मुझ को,

रखें गे दिल में संजो कर उम्र भर रिश्तों को हम,
यह है दीगर बात , अपने लब नहीं खोलें गे हम,,

Friday, February 19, 2010

हज़ार बस्तियां मैंने बसा के रख दी हैं
तमाम उम्र खुदाया मैं घर बना ना सका

लाजवाब


खुबसूरत खलिश के पन्नो से
जायजा - -ज़ुल्म--सनम आज लिया जाए गा,
यूं
सिला उन की ज़फायों का दिया जाये गा
जिस
के हर शेर पे,हर लफ्ज़ पे ,तड़पे वोह संग
आज उस नज़्म का आगाज़ किया जाये गा

दर्द
मांगा हम ने अल्लाह से , कुछ इस अंदाज़ में
दोनों
हाथों से मेरे दामन को उस ने भर दिया

सुखनगर हो गए हैं वोह,यह संग को अच्छा लगता है ,
मगर यह शेर इक दिल की सदा क्यूँ कर नहीं लगते ,,

हज़ार
बस्तियां मैंने बसा के रख दी हैं
तमाम उम्र खुदाया मैं घर बना ना सका

इक परिंदे के चले जाने से उड़ कर संग ,
रंग हर-इक शय का मिरे शहर में धुंधला क्यूँ है

किस्मत पे अपनी नाज़ सा होने लगा है संग ,
जिस दिन से दिलजलों के शहंशाह हुए हैं हम
तुझ से गिला करैं या मुक्कद्दर पे रोयें हम
तेरे करीब के भी तन्हा रहे हैं हम