Sunday, February 28, 2010

लाजवाब लफ्ज़ 'दोस्त ' के नाम


वाह कहती है जुबां ,जिस नाम पर ,जिस बात पर ,
याखुदा यारों पे मेरे रंग की बरसात कर ,, होली है होली है......

Sunday, February 21, 2010

फिर तुम

गुलशन के वीरां कोने में , मेरा घर था , मेरा घर है ,
भंवरो की बस्ती में बोलो ,हम तुम को कैसे मिल जाते ,,

मेरे हाथों की लकीरों में जो पढ़ सकते हो पढ़ लो ,
इनमे धुंधला सा कोई नाम कई बार लिखा है ..

Saturday, February 20, 2010

लाजवाब -तुम सिर्फ तुम

दर्द की शिद्दत में जाने क्या से क्या हम कह गए ,
खुदा उन को हमारी बददुआयें ना लगें,


मिरे यार का तस्सव्वुर इस दर्जा है मुक्कदस ,
तख्लीके काबा हो गयी ,सिजदा जहाँ किया ,

रूठे वोह ख्वाब में हम आँख नहीं खोलें गे ,
ख्वाब में फिर से वोह आये मनाये मुझ को,

रखें गे दिल में संजो कर उम्र भर रिश्तों को हम,
यह है दीगर बात , अपने लब नहीं खोलें गे हम,,

Friday, February 19, 2010

हज़ार बस्तियां मैंने बसा के रख दी हैं
तमाम उम्र खुदाया मैं घर बना ना सका

लाजवाब


खुबसूरत खलिश के पन्नो से
जायजा - -ज़ुल्म--सनम आज लिया जाए गा,
यूं
सिला उन की ज़फायों का दिया जाये गा
जिस
के हर शेर पे,हर लफ्ज़ पे ,तड़पे वोह संग
आज उस नज़्म का आगाज़ किया जाये गा

दर्द
मांगा हम ने अल्लाह से , कुछ इस अंदाज़ में
दोनों
हाथों से मेरे दामन को उस ने भर दिया

सुखनगर हो गए हैं वोह,यह संग को अच्छा लगता है ,
मगर यह शेर इक दिल की सदा क्यूँ कर नहीं लगते ,,

हज़ार
बस्तियां मैंने बसा के रख दी हैं
तमाम उम्र खुदाया मैं घर बना ना सका

इक परिंदे के चले जाने से उड़ कर संग ,
रंग हर-इक शय का मिरे शहर में धुंधला क्यूँ है

किस्मत पे अपनी नाज़ सा होने लगा है संग ,
जिस दिन से दिलजलों के शहंशाह हुए हैं हम
तुझ से गिला करैं या मुक्कद्दर पे रोयें हम
तेरे करीब के भी तन्हा रहे हैं हम