खुबसूरत खलिश के पन्नो से जायजा -ए -ज़ुल्म-ए-सनमआजलियाजाएगा, यूंसिलाउनकीज़फायोंकादियाजायेगा जिसकेहरशेरपे,हरलफ्ज़पे ,तड़पेवोहएसंग आजउस नज़्मका आगाज़कियाजाये गा दर्दमांगाहमनेअल्लाहसे , कुछइसअंदाज़में दोनोंहाथोंसेमेरेदामनकोउसनेभरदिया सुखनगर हो गए हैं वोह,यह संग को अच्छा लगता है , मगर यह शेर इक दिल की सदा क्यूँ कर नहीं लगते ,, हज़ारबस्तियांमैंनेबसाकेरखदीहैं तमामउम्रखुदायामैंघरबनानासका